एक अध्ययन के अनुसार मानव जनित जलवायु परिवर्तन की वजह से 2044 से 2067 के दौरान आर्कटिक महासागर में मौजूद बर्फ खत्म हो जाएगी। लॉस एंजिलिस स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने हालांकि इसके साथ ही यह भी कहा है कि जब तक मनुष्य पृथ्वी पर है तब तक आर्कटिक क्षेत्र पर बर्फ रहेगी। सर्दियों में जहां इस बर्फ का क्षेत्रफल बढ़ेगा वहीं गर्मियों में कम होगा। सेटेलाइट अध्ययन इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि सितंबर के दौरान जब आर्कटिक महासागर में सबसे कम बर्फ होती है, उसमें प्रति दशक 13 फीसद की गिरावट देखी जा रही है। यह सिलसिला साल 1979 से चल रहा है। दरअसल, जलवायु परिवर्तन के आंकड़ों के आधार पर जानकारी देने वाले वैज्ञानिक कई दशकों से आर्कटिक की बर्फ पिघलने को लेकर भविष्यवाणी कर रहे हैं, लेकिन नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित लेख उनके अध्ययन के प्रकार को लेकर सहमत नहीं है।
इस मामले में कुछ वैज्ञानिकों का यह कहना है कि 2026 तक सितंबर में आर्कटिक महासागर में बिल्कुल बर्फ नहीं रहेगी। वहीं कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यह स्थिति 2132 तक आ सकती है। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में सहायक शोधकर्ता और इस शोध के मुख्य लेखक चैड ठाकरे का कहना है कि आइस-सी एल्बेडो फीडबैक को समझने में हुई गलती की वजह से महासागर में जमी बर्फ के पिघलने पर अलग-अलग विचार सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया तब होती है जब महासागर में जमी बर्फ का एक टुकड़ा पूरी तरह से पिघल जाता है, जिसकी वजह से समुद्र की जल सतह सूर्य के सीधे संपर्क में आ जाती है और अधिक मात्रा में प्रकाश अवशोषित करने लगती है। शोधकर्ताओं ने कहा कि सूर्य के प्रकाश की परावर्तनशीलता या एल्बेडो में परिवर्तन से स्थानीय वार्मिंग अधिक होती है, जिससे बर्फ पिघलती है।